इन्साफ !

इस कड़कड़ाती ठंड मे
कौन भला सोता हैं.
इन टूटी हुई झोपड़ियो मे,

प्रकृति कि इस भयावह
ठंड से कौन भला टकरा
सकता हैं..

बनाया जिसको स्वयं प्रकृति
ने इस लायक वो भला ही,

इस भीषण अन्धकारमय
ठंड से टकरा सकता हैं..

क्या है कोई नेता भला
जो सो सके इस,

अन्धकारमय ठंड मे इन
झुग्गी -झोपड़ियो मे..

हैं कोई भला अफसर (अधिकारी )
जो सो सके इस भीषण ठंड मे,
इन झुग्गी -झोपड़ियों  मे.

लेकिन एक दीन -निर्धन
भिखारी जो सोता हैं,

इस भयावह भीषण ठंड
मे इन झुग्गी -झोपड़ियों मे..

एक किसान , एक जवान (फ़ौजी )
कोई सोता हैं, आपका पेट भरने के लिए

तो कोई सोता हैं आपकी सुरक्षा के लिए
इस भीषण अन्धकारमय ठंड मे,
इन झुग्गी झोपड़ियों मे..

ना ही अल्लाह , ना ही ईश्वर ,
नाही कोई मनुष्य जो सुने इनकी ,

छोटी सी आरजू को
इस भीषण अंधकारमय ठंड में

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