मासूम बच्चे !
क्या लिखूँ, क्या बताऊ, कुछ समझ नहीं आता जब नजरें जाती उन मासूम बच्चों पर जो पढ़ना तो चाहते हैं पर पढ़ नहीं पाते इन ज़ालिम पैसो कि वजह से.. जब देखता हु उनको सुनसान सड़को पर हाथ मे कटोरा भीख मांगते हुये, मानो कतरा - कतरा हो जाता हु.. उनमे हैं वो सारे गुण जो होते हैं एक विधार्थी मे , बस दोष हैं तो उन पैसो का.. क्या समा जाएगी इनकी प्रतिभा इन ज़ालिम पैसो कि वजह से क्या इन पैसो के नीचे इनकी प्रतिभा मायने नहीं रखती .. सड़को पर भटकते हुये मांगे वो दो पैसे तो मना ना करना ये इंसानों. किसी पता वो पेन कि रिफिल के लिये मांग रहा हो या फिर पुस्तक के लिये या फिर प्राकृतिक क्षुधा को मिटाने के लिये मांग रहा हो. . तंबाकू, बीड़ी, मादक पदार्थ या जिओ (sim) का सेवन करने वाले को क्या फर्क पड़ता दो पैसो का. देवी और सज्जनों जिस प्रकार आप अपने बच्चों के लिये बड़े - बड़े सपने देखते हैं कि हमारा बेटा / बेटी बड़े होकर अफसर बनेंगे लेकिन इनके लिये सपने देखने बाला कोई नहीं हैं वो अनाथ है, दीन है . जब मे इन मासूम बच्चों को सड़को पर भीख मांगते हुये देखता हु तो मानो कतर...
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