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जनवरी, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अजीब ! जिंदगी से भड़ास ..

दिल में एक आस है कहने को दिल बेकरार हैं ये जिंदगी .. क्या करूँ ? बोल दूँ या फिर रहने दूँ ये जिंदगी .. तू सुनना चाहती है कि नहीं ये जिंदगी .. तड़पते हुये ह्रदय को कैसे समझाऊ मै .. तू सुन या मत सुन मै तो सुनाऊंगा तुझे ये जिंदगी .. तू जब चली जावेगी तब क्या होगा मेरा ये जिंदगी .. मेरी शरीर से निकलकर किसी अन्य शरीर में जावेगी क्या पीड़ा नहीं होगी मुझे ये जिंदगी .. जब तुझे जाना ही था तो कुछ समय के लिए मेरे निर्मल ह्रदय को पीड़ा क्यों दी तूने बोल ये जिंदगी .. क्यों दिखाये तूने मुझे ये संसार रुपी सपने क्या कशूर था मेरा ये जिंदगी .. तूने सोचा मै रुकूंगा , मै डरूँगा , मै कमजोर हो जाऊँगा .. ये तेरी गलतफहमी है ये जिंदगी .. मै तेरी दी हुयी हर बाधा को पार कर अपने सपने साकार करूँगा ये जिंदगी .. मेरे उलझे हुये परिवार ने जो सुलझे हुये सपने देखे मेरे लिए मै उन्हें साकार करूँगा ये जिंदगी .. तेरे जाने का दुख होगा मुझे तू जाना ही क्यों चाहती है तू चाहे सब कुछ कर सकती है ये जिंदगी .. तूने मुझे संसार से मिलाया तूने मुझे जीना सिखाया फिर क्यों
गणतंत्र दिवस पर इस गण के समस्त नागरिकों से विनम्र निवेदन स्वतंत्रा , समानता तथा एकता  बनायें रखें .. इसी के साथ सभी को गणतंत्र दिवस कि हार्दिक - हार्दिक  शुभकानायें !

सुविचार !

जिस दिन आपके कहे हुए या लिखे हुए विचार आपके सामने आने लगे तो समझ जाओ परिवर्तन का आगाज आरम्भ हुआ.. 

Thought

यदि अंधविश्वास पर विश्वास हो जाये जाये तो ..

चोर और चोरी !

बहुत पुरानी बात है एक शहर में एक बिज़नेस का परिवार निवास करता था . बिज़नेस मेन का नाम दशरथ सिंह था उसकी धर्मपत्नी का नाम सुशीला बाई तथा उसके दो बच्चे एक लड़का - एक लड़की , लड़के का नाम राम तथा लड़की का नाम राधा था लड़के की उम्र करीव बारह वर्ष तथा लड़की की उम्र आठ वर्ष थी .. दशरथ और उसकी पत्नी सुशीला बहुत सरल स्वाभाव , बहुत दयालु थे . उन लोगो के पास पैसो की कमी नहीं थी बहुत धनवान थे उनके बच्चे बहुत बड़े स्कूल में पढ़ाई करते  थे . अचानक उनके घर पर आठ -दस  भिक्षुक लोग आ गये . दशरथ ने पूछा आप लोग कोन है उन्होंने कहा हम भिक्षुक है आप से दक्षिणा लेने आये है हम यहाँ सभी से हर वर्ष दक्षिणा लेने आते है आपका ही घर बाकि था . दशरथ और उसकी पत्नी ने कहा गुरुदेव आप लोग बैठिये हम आपकी दक्षिणा का प्रबंध करते है . दशरथ ने कहा आप सभी लोग भोजन ग्रहण कर ही जावें , में आपकी कुछ क्षणों में भोजन बनबाता हु . दोनों पति -पत्नी  बहुत सारे पकवान बना दिये बहुत खाना बना लिया और प्रेम से खाना खिलाया . खाना खाने के बाद भिक्षुक बोले अब हम चलते है , हमें हमारी दक्षिणा से कही ज्यादा मिल गया दशरथ बोला नहीं गुरुदेव आप को खा

इन्साफ !

इस कड़कड़ाती ठंड मे कौन भला सोता हैं. इन टूटी हुई झोपड़ियो मे, प्रकृति कि इस भयावह ठंड से कौन भला टकरा सकता हैं.. बनाया जिसको स्वयं प्रकृति ने इस लायक वो भला ही, इस भीषण अन्धकारमय ठंड से टकरा सकता हैं.. क्या है कोई नेता भला जो सो सके इस, अन्धकारमय ठंड मे इन झुग्गी -झोपड़ियो मे.. हैं कोई भला अफसर (अधिकारी ) जो सो सके इस भीषण ठंड मे, इन झुग्गी -झोपड़ियों  मे. लेकिन एक दीन -निर्धन भिखारी जो सोता हैं, इस भयावह भीषण ठंड मे इन झुग्गी -झोपड़ियों मे.. एक किसान , एक जवान (फ़ौजी ) कोई सोता हैं, आपका पेट भरने के लिए तो कोई सोता हैं आपकी सुरक्षा के लिए इस भीषण अन्धकारमय ठंड मे, इन झुग्गी झोपड़ियों मे.. ना ही अल्लाह , ना ही ईश्वर , नाही कोई मनुष्य जो सुने इनकी , छोटी सी आरजू को इस भीषण अंधकारमय ठंड में

सुविचार

लक्ष्य को हासिल करने के लिये सकारात्मक क्रांति (स +क्रांति ) का होना आवश्यक हैं ... सभी को सक्रांति कि ढेर सारी शुभकामनायें ... #socialist 

ईश्वर से पुकार

 क्या बताऊ आपको इन दीन - दुखियो कि कहानी कोई नहीं सुनता इनकी छोटी सी पुकार को क्या हो गया इन ईश्वर कि परछाइयों को जिन्हे बनाया तूने मेरे लिए  वो भी खो गए इस मायाजाल मे नहीं सुनाई देती इनको भी दीन - दुखियो कि पुकार नेता हो , व्यापारी हो चाहे हो कोई अधिकारी नहीं सुनाई देती इनको भी दीन - दुखियो कि पुकार बच्चे , बूढ़ो एवं युवाओ को भी नहीं सुनाई देती इनकी छोटी सी पुकार इस संसार के बड़े - बड़े रईसों को भी नहीं सुनाई देती  इनकी छोटी सी पुकार घर - घर जाकर मांगे भीख नहीं देते इनको कोई भीख क्या हमारी युवा पीढ़ी इतनी निर्धन हो गयी है जो किसी भूखे  भिक्षुक को पेट भर भिक्षा  ना दे सके कहाँ है ? हमारी संस्कृति जो किसी अतिथि या किसी भिक्षुक के आने पर उन्हें कभी निराश नहीं करते थे इस विलुप्तमय संसार में विलुप्त हो गयी संस्कृति विलुप्त हो गयी मनुष्यता सब प्राणी - जगत का पालन करने वाली धरा को भी नहीं सुनाई देती इन दीन - दुखियो की पुकार क्या है कोई निःस्वार्थ  प्राणी जन्मा है कोई फरिश्ता जो सुने हमारी छोटी सी आरज़ू भरी पुकार को जिसने बनाया मुझे जि

सुविचार

इस संसार मे विश्वास सब पर करना लेकिन आँखे बंद करके किसी पर मत करना !

सुविचार

बार -बार एक ही शब्द को दोहराना मूर्खता है और मूर्ख व्यक्ति कि बातो पर ध्यान देना उससे भी बड़ी मूर्खता है 

कहा है इंसानियत ?

आज सर्दी बहुत थी मैंने सोचा थोड़ा धूप लेकर आता हु. मै बगीचे के पास जाकर बैठ गया बगीचे मे बहुत लोग थे वो भी सर्दी का आंनद ले रहे थे सूरज कि किरणे धीरे -धीरे आ रही थी ये किरणे बड़ी आकर्षित लग रही थी. तभी अचानक एक बूढी औरत धीरे -धीरे बगीचे कि तरफ आ रही थी और बगीचे के किनारे लेट गयी मैंने उधर देखा पहले तो डर गया कि कुछ हो तो नहीं गया लेकिन सोचा हो सकता है वो भी यहाँ धूप लेने आये हो मैंने उन पर से ध्यान हटा दिया इस बगीचा मे छोटे -छोटे बच्चे खेल रहे थे बहुत समय बीत जाने के बाद बहा उपस्थित सभी लोग जाने लगे थोड़ी देर मे पूरा बगीचा खाली हो गया लेकिन किसी कि नजर उस औरत कि ओर नहीं गयी मे उस औरत के पास जा ही रहा था कि अचानक बहा पर एक करीब 10-12 साल का बच्चा आया और बूढी औरत से पूछने लगा दादी- दादी आप यहाँ क्यों लेटी है ? आप कि तबियत तो ठीक है? औरत मंद स्वर मे बोली बेटा मे बिल्कुल ठीक हु प्यास और थकावट के कारण थोड़ा सा चक्कर आ गया था ये सुनते ही मुझे अपने आप पर शर्म महसूस हुई कि मे उस औरत से आगे पूछ सकता था लेकिन कुछ सोच कर पूछ नहीं पाया मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी मेरी बजह से एक बूढी औरत तीन घंटे तड़पती

अच्छाइयों को ग्रहण करना सीखिए

इस संसार मे कई तरह के लोग निवास करते  है. आपकी सभी तरह के लोगो से मुलाक़ात होगी . ये सभी लोग आपसे अच्छी - बुरी बाते भी करेंगे . लेकिन ये आप पर निर्भर करता है कि आप उनसे क्या ग्रहण करते है, क्या सीखते है ?
मनुष्य में यदि समय रहते परिवर्तन आ जाये तो वह इतिहास बदल सकता है !! Socialist__